आलोचना >> हिन्दी साहित्य का आदिकाल हिन्दी साहित्य का आदिकालहजारी प्रसाद द्विवेदी
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हिंदी साहित्य के इतिहास की पहली सुसंगत और क्रमबद्ध व्याख्या का श्रेय अवश्य आचार्य रामचंद्र शुक्ल को जाता है, मगर उसकी कई गुम और उलझी हुई महत्त्वपूर्ण कड़ियों को खोजने और सुलझाने का यश आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का है
हिंदी साहित्य के इतिहास की पहली सुसंगत और क्रमबद्ध व्याख्या का श्रेय अवश्य आचार्य रामचंद्र शुक्ल को जाता है, मगर उसकी कई गुम और उलझी हुई महत्त्वपूर्ण कड़ियों को खोजने और सुलझाने का यश आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का है। अगर द्विवेदी न होते तो हिंदी साहित्य का इतिहास अभी तक अपनी व्याख्या संबंधी कई एकांगी धारणाओं का शिकार रहता और उसकी परंपरा में कई छिद्र रह जाते। इतिहास के प्रति एक अन्वेषक और प्रश्नाकुल मुद्रा, परंपरा से बेहद गहरे सरोकार तथा मौलिक दृष्टि के मणिकांचन योग से बना था। हजारी प्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक व्यक्तित्व और उन्होंने साहित्येतिहास और आलोचना को जो भूमि प्रदान की, हिंदी की आलोचना आज भी वहीं से अपनी यात्रा शुरू करती दिखती है। खास तौर पर हिंदी साहित्य के आदिकाल की पूर्व व्याख्याएँ उन्हें शंकित बनाती रहीं और अपने व्यापक चिंतन से अपनी शंकाओं को उन्होंने साबित किया। हिंदी साहित्य के आदिकाल के मूल्यांकन से जुड़े उनके व्याख्यान आज भी हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। जब भी हिंदी साहित्य के इतिहास और उनकी परंपरा की बात की जाएगी, ये व्याख्यान एक प्रकाश-स्तंभ की-सी भूमिका निभाते रहेंगे।
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